भस्म (विभूति) केवल एक राख नहीं, बल्कि शिवभक्ति का पवित्र चिन्ह है। इसे शरीर पर लगाना हिंदू धर्म में आध्यात्मिक शुद्धता, ऊर्जा सुरक्षा और आत्म-जागरण का प्रतीक माना जाता है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि भस्म लगाने के भी कुछ नियम होते हैं? अगर ये नियम सही तरीके से न निभाए जाएँ, तो इसका प्रभाव कम या उल्टा हो सकता है।
आइए जानते हैं भस्म लगाने के शास्त्रीय नियम, स्थान और सही समय के बारे में:
🔱 1. भस्म कौन-सी होनी चाहिए?
- शुद्ध और पवित्र यज्ञ भस्म (गौ-घृत, लकड़ी या औषधियों से बनी)
- या फिर उज्जैन, काशी जैसे तीर्थ क्षेत्रों से प्राप्त भस्म
- बाजार की भस्म लेते समय सुनिश्चित करें कि वह गंधरहित, रासायन-मुक्त और जैविक हो
📿 2. भस्म कब लगानी चाहिए?
- सुबह स्नान के बाद – जब शरीर शुद्ध और मन शांत हो
- पूजा, जप या ध्यान से पहले और बाद में
- सोते समय – रात्रि में भस्म लगाने से नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा मिलती है
🧘 3. भस्म कहाँ लगानी चाहिए?
शास्त्रों के अनुसार, भस्म को शरीर के इन प्रमुख स्थानों पर लगाया जाता है:
- ललाट (माथे) – ज्ञान और एकाग्रता का केंद्र
- कंठ (गला) – वाणी की शुद्धता और आत्म-संयम
- छाती (हृदय स्थान) – भक्ति और श्रद्धा का भाव
- बाँह और कंधे – आध्यात्मिक बल और सुरक्षा
- कुछ साधक भुजाओं, पीठ, नाभि और रीढ़ पर भी विभूति लगाते हैं
🕉️ 4. भस्म कैसे लगानी चाहिए?
- अंगुली या तीन अंगुलियों से त्रिपुंड (तीन रेखाएं) बनाएँ
- भस्म लगाते समय “ॐ नमः शिवाय” या “राम रामेति रामेति” मंत्र का जाप करें
- हँसते, बात करते या गंदे हाथों से भस्म न लगाएँ – यह अपवित्रता मानी जाती है
❗ 5. क्या सावधानियाँ रखनी चाहिए?
- भस्म को बाथरूम, रसोई, या पैरों के पास न रखें
- इसे कभी भी ज़मीन पर न गिराएँ या पैर से न छुएँ
- भस्म लगाने के बाद अपवित्र कार्यों (जैसे मांस-मदिरा सेवन) से दूर रहें
🌟 भस्म लगाने के आध्यात्मिक लाभ:
- आत्मिक शुद्धता और मन की स्थिरता
- नकारात्मक ऊर्जा से बचाव
- मृत्यु और विनाश के भय से मुक्ति
- शिव कृपा और साधना में वृद्धि
🙏 निष्कर्ष:
भस्म कोई साधारण राख नहीं — यह शिव का आशीर्वाद है।
जब इसे श्रद्धा और नियमों के साथ लगाया जाता है, तो यह न केवल शरीर की रक्षा करता है, बल्कि आत्मा को भी आध्यात्मिक ऊँचाई देता है।
तो अगली बार जब आप भस्म लगाएँ, तो इन नियमों को ज़रूर ध्यान रखें और इस परंपरा को सम्मान के साथ निभाएँ।