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भैरव: भगवान शिव का क्रोध और करुणा से भरा दिव्य रूप

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भगवान शिव के अनेक रूप हैं — शांत, समाधिस्थ, रचनात्मक और संहारक। परंतु जब शिव अपने रौद्र और उग्र रूप में प्रकट होते हैं, तब वह बन जाते हैं भैरव
भैरव न केवल संहार के देवता हैं, बल्कि वे धर्म और सत्य के रक्षक, भक्तों के संरक्षक और अधर्म, पाप और अज्ञानता के विनाशक भी हैं।

भैरव का रूप हमें याद दिलाता है कि ईश्वर केवल करुणा और प्रेम का नहीं, बल्कि न्याय और तांडव का भी प्रतीक है।


भैरव का अर्थ और स्वरूप

संस्कृत में “भैरव” शब्द का अर्थ होता है – भय को हरने वाला
यह नाम तीन मूल तत्वों से बना है:

  • – भाव (भावना या भावना का संतुलन)
  • रै – राग (आसक्ति या इच्छा)
  • – वासना (इंद्रियों की लिप्सा)

जो इन तीनों पर नियंत्रण रखता है, वही है भैरव
उनका स्वरूप रौद्र होता है — त्रिशूल, खप्पर (खोपड़ी का पात्र), डमरू और भस्म से विभूषित। उनका वाहन श्वान (कुत्ता) होता है, जो सतर्कता और निष्ठा का प्रतीक है।


भैरव की उत्पत्ति की पौराणिक कथा

शिव पुराण के अनुसार, एक बार भगवान ब्रह्मा और विष्णु में श्रेष्ठता को लेकर विवाद हो गया।
ब्रह्मा ने अहंकारवश पाँचवां सिर उत्पन्न कर शिव का अपमान किया। तब भगवान शिव ने अपने क्रोध से भैरव को उत्पन्न किया, जिन्होंने ब्रह्मा का वह पाँचवाँ सिर काट दिया।

इसलिए भैरव को कहा जाता है “कपट और अहंकार का संहारक”


भैरव के आठ रूप – अष्ट भैरव

भगवान भैरव के आठ प्रमुख स्वरूप हैं, जिन्हें अष्ट भैरव कहते हैं:

  1. काल भैरव – काल (समय) के स्वामी, बनारस के रक्षक
  2. क्रोध भैरव – क्रोध को नियंत्रित करने वाले
  3. चंद्र भैरव – मानसिक शांति देने वाले
  4. कपाल भैरव – ज्ञान और विवेक के देवता
  5. रूद्र भैरव – संहारक शक्ति के प्रतीक
  6. भीषण भैरव – भय और बुराइयों को नष्ट करने वाले
  7. संहार भैरव – मृत्यु और पुनर्जन्म को नियंत्रित करने वाले
  8. उन्मत्त भैरव – अज्ञानता का नाश करने वाले

इन सभी भैरव रूपों की उपासना करने से जीवन में शक्ति, सुरक्षा और आध्यात्मिक प्रगति का अनुभव होता है।


भैरव की पूजा का महत्व

भैरव की पूजा विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी मानी जाती है:

  • जिनके जीवन में अज्ञात भय, रोग, या राहु-केतु जैसे ग्रहों का प्रभाव हो।
  • जो तांत्रिक बाधाओं, नजर दोष, या नकारात्मक शक्तियों से परेशान हों।
  • जिनकी कुंडली में काल भैरव योग, भयरोग दोष, या शनि की महादशा हो।

शनिवार, अष्टमी, और कालाष्टमी के दिन भैरव पूजा करने से विशेष फल मिलता है।


काल भैरव: काशी के कोतवाल

काशी (वाराणसी) में स्थित काल भैरव मंदिर को बहुत ही शक्तिशाली माना जाता है।
यहाँ भैरव को नगर रक्षक यानी “काशी का कोतवाल” कहा जाता है।
कहा जाता है कि काशी में रहने वाला कोई भी व्यक्ति बिना काल भैरव की अनुमति के वहाँ टिक नहीं सकता।

यहाँ के भैरव बाबा को मदिरा अर्पण करने की परंपरा भी है — जो उनकी तांत्रिक शक्ति से जुड़ी हुई मानी जाती है।


भैरव पूजा का आध्यात्मिक संदेश

भैरव केवल डराने वाले नहीं हैं, वे हमें यह सिखाते हैं कि:

  • अहंकार, पाप, और अज्ञान का नाश ही आत्मा की शुद्धि है।
  • सत्य के मार्ग पर चलना ही सच्चा धर्म है।
  • जब भीतर के राक्षस खत्म होते हैं, तभी सच्चे आत्मबोध की प्राप्ति होती है।

निष्कर्ष

भैरव भगवान शिव का वह रूप हैं जो हमें चेताते हैं, जगाते हैं और हमारी रक्षा करते हैं।
उनकी उपासना से मनोबल, साहस, आत्मविश्वास और आध्यात्मिक शक्ति का विकास होता है।

वह उन सभी के संरक्षक हैं जो धर्म और सच्चाई के मार्ग पर चलते हैं, और उन सभी के विनाशक जो अधर्म, छल और पाप में लिप्त रहते हैं।

भैरव हैं तांडव भी, और रक्षा भी। वे भय का अंत हैं, और आत्मा की मुक्ति का द्वार भी।

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